6551
आजा आज फिर कुछ,
क़समे जोड़ी जाए...
और नयी सीमाएँ,
लांघी जाए.......!
6552
ज़रूरी नहीं साथ
रहनेकी ही,
क़सम निभाई जाये...
ज़िंदा रखनेका वादा भी
तो,
किया था उसने.......!
6553
तुझसे ना मिलनेकी,
क़सम खाकर...
हर राहमें तुझे,
ढूँढा बहुत हैं.......
6554
तू कहीं भी
हो,
तेरे फूलसे आरिज़की क़सम,
तेरी पलकें मेरी आंखों,
झुकी रहती हैं.......
साहिर
6555
फिर उसी राहपें,
निकल पड़े हैं...
कल जहाँ ना जानेकी,
क़सम खा बैठे
थे.......