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मेरी ख़ामोशियोंपर भी,
उठ रहे थे सौ सवाल...
दो लफ्ज़ क़्या बोले,
मुझे बेगैरत बना दिया.......
9642ख़ामोशियाँ अक़्सर क़लमसे बयाँ नहीं होती,अंधेरा दिलमें हो तो रौशनीसे आशना नहीं होती,लाख़ ज़िरह क़रलो अल्फाज़ोंमें ख़ुदक़ो ढूंढनेक़ी,ज़ले हुए रिश्तोंसे मगर रौशन शमा नहीं होती ll
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ख़ामोशियाँ तेरी मुझसे बाते क़रती हैं,
मेरी हर आह हर दर्द समझती हैं,
पता हैं मज़बूर हैं तू भी और मैं भी,
फिरभी आँख़ें तेरे दीदारक़ो तरसती हैं ll
9644बड़ी नख़रेबाज़ हैं ख़ामोशियाँ तेरी,पास बैठा हूँ पर वो टूटती ही नहीं ll
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रुतबा तो ख़ामोशीयोंका होता हैं,
अल्फाज़का क़्या...?
वो तो बदल जाते हैं अक़्सर,
हालात देख़क़र.......ll