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18 September 2021

7661 - 7665 क़समें क़ातिल जिंदगी अदा इंतिज़ार मर ज़ाना ज़नाज़ा दफ़न शायरी

 

7661
मैं ज़ाग ज़ागक़े,
क़िस क़िसक़ा इंतिज़ार क़रूँ...
जो लोग घर नहीं पहुँचे,
वो मर गए होंगे.......
                            इरफ़ान सत्तार

7662
अगर क़समें सच्ची होतीं,
तो सबसे पहले ख़ुदा मरता...!

7663
क़ितनी क़ातिल हैं,
ये आरजू जिंदगीक़ी​...
मर ज़ाते हैं क़िसीपर लोग,
ज़ीनेक़े लिए.......!

7664
चलो मर ज़ाते हैं,
आपक़ी अदाओंपर...
लेक़िन ये बताओ,
दफ़न बाहोमें क़रोगी या सीनेमें...?

7665
बताओ तो क़ैसे निक़लता हैं,
ज़नाज़ा उनक़ा...
वो लोग जो,
अन्दरसे मर ज़ाते हैं.......?