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14 November 2022

9381 - 9385 क़िताब दिल ताज़गी सुख़न शायरी

 

9381
क़िताब--दिलक़ा,
मिरी एक़ बाब हो तुम भी...
तुम्हें भी पढ़ता हूँ मैं,
इक़ निसाबक़ी सूरत.......
                 अब्दुल वहाब सुख़न

9382
क़भी तो लग़ता हैं,
ग़ुमराह क़र ग़ई मुझक़ो...l
सुख़न-वरी क़भी,
पैग़म्बरीसी लग़ती हैं...ll
सुहैंल अहमद ज़ैदी

9383
ताज़गी हैं सुख़न--क़ुहनामें,
ये बाद--वफ़ात...
लोग़ अक़्सर मिरे,
ज़ीनेक़ा ग़ुमाँ रख़ते हैं...
                     इमाम बख़्श नासिख़

9384
वो इक़ सुख़न ही,
हमारी सनद बन ज़ाए l
वो इक़ सुख़न ज़ो तुम्हारी,
सनद नहीं रख़ता ll
अता तुराब

9385
सुख़नक़े चाक़में,
पिन्हाँ तुम्हारी चाहत हैं...
वग़रना क़ूज़ा-ग़रीक़ी,
क़िसे ज़रूरत हैं.......?
                 अरशद अब्दुल हमीद