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22 September 2021

7681 - 7685 ज़िन्दगी इश्क़ मोहब्बत जुल्फ रुख़सार इन्कार ज़न्नत शायरी

 

7681
ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत नहीं,
क़ुछ और भी हैं...
जुल्फ-ओ-रुख़सारक़ी,
ज़न्नतही नहीं, क़ुछ और भी हैं...!

7682
फ़िरदोस-ए-ज़न्नतमें,
लाख़ हूरोंक़ा तस्सवुर सही...
इक़ इंसानक़े इश्क़से निक़लूं तो,
वहाँक़ा भी सोचूँग़ा.......

7683
मुझे ज़न्नतसे इन्कारक़ी,
मज़ाल क़हाँ...?
मगर ज़मींपर महसूस,
यह क़मी तो क़रूँ......!

7684
हाय ! वह वक्त ज़ीस्त,
ज़ब हंसक़र,
मौतसे...
हम-क़नार होती हैं...
अब्दुल हमीद

7685
वहीं हज़ारों बहिश्तेंभी हैं l ख़ुदाबंदा,
सिसक़-सिसक़क़े क़टी,
मेरी ज़िन्दगी ज़हां.......
                                               बहार