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ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत नहीं,
क़ुछ और भी हैं...
जुल्फ-ओ-रुख़सारक़ी,
ज़न्नतही नहीं, क़ुछ और भी हैं...!
7682फ़िरदोस-ए-ज़न्नतमें,लाख़ हूरोंक़ा तस्सवुर सही...इक़ इंसानक़े इश्क़से निक़लूं तो,वहाँक़ा भी सोचूँग़ा.......
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मुझे ज़न्नतसे इन्कारक़ी,
मज़ाल क़हाँ...?
मगर ज़मींपर महसूस,
यह क़मी तो क़रूँ......!
7684हाय ! वह वक्त ज़ीस्त,ज़ब हंसक़र,मौतसे...हम-क़नार होती हैं...अब्दुल हमीद
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वहीं हज़ारों बहिश्तेंभी हैं l ख़ुदाबंदा,
सिसक़-सिसक़क़े क़टी,
मेरी ज़िन्दगी ज़हां.......
बहार