1551
गीली लकड़ीसा इश्क,
उन्होंने सुलगाया हैं...
ना पूरा जल पाया कभी,
ना बुझ पाया हैं...!!!
1552
उम्रभर उठाया बोझ,
उस ''खीली'' ने…
और लोग तारीफ़...
''तस्वीर'' की करते रहे.......
1553
बहुत शौक था;
सबको जोडके रखनेका...
होश तब आया जब,
अपने वजूदके टुकडे देखे.......
1554
बड़ा अजीब होता हैं,
ये मोहब्बत हैं खेल भी,
एक थक जाये तो,
दोनों हार जाते हैं...!
1555
वो करीब बहुत हैं,
मगर कुछ दूरियोंके साथ...,
हम दोनों जी तो रहे हैं,
पर बहुतसी मजबूरीयोंके साथ.......