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शख्सियत अच्छी होगी,
तभी दुश्मन बनेगे...
वरना बुरे लोगोंको,
देखता कौन हैं.......
7147यूँ तो मैं दुश्मनोंके काफिलोंसेभी,सर उठाके गुजर जाता हूँ...बस खौफ तो अपनोंकी गलियोंसे,गुजरनेमें लगता हैं.......
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दुश्मनको कैसे,
खराब कह दूँ...?
जो हर महफ़िलमें,
मेरा नाम लेते हैं.......!
7149कितने झूठे हो गये हैं,हम बच्चपनमें;अपनोंसे भी रोज रुठते थे,आज दुश्मनोंसे भी,मुस्कराके मिलते हैं...
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हाथमें खंजरही नहीं,
में पानीभी चाहिए...
ऐ खुदा दुश्मनभी मुझे,
खानदानी चाहिए.......!