11 February 2021

7146 -7150 आँख महफ़िल काफिला खौफ गलियाँ दोस्ती दुश्मनी शायरी

 

7146
शख्सियत अच्छी होगी,
तभी दुश्मन बनेगे...
वरना बुरे लोगोंको,
देखता कौन हैं.......

7147
यूँ तो मैं दुश्मनोंके काफिलोंसेभी,
सर उठाके गुजर जाता हूँ...
बस खौफ तो अपनोंकी गलियोंसे,
गुजरनेमें लगता हैं.......

7148
दुश्मनको कैसे,
खराब कह दूँ...?
जो हर महफ़िलमें,
मेरा नाम लेते हैं.......!

7149
कितने झूठे हो गये हैं,
हम बच्चपनमें;
अपनोंसे भी रोज रुठते थे,
आज दुश्मनोंसे भी,
मुस्कराके मिलते हैं...

7150
हाथमें खंजरही नहीं,
में पानीभी चाहिए...
खुदा दुश्मनभी मुझे,
खानदानी चाहिए.......!

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