3 February 2021

7121 - 7125 सफ़र वक्त रूबरू आँख आँसु खंजर क़दम मुश्किल हमदर्द दोस्ती दुश्मनी शायरी

 

7121
दुश्मनीका सफ़र,
इक क़दम दो क़दम...
तुम भी थक जाओगे,
हम भी थक जाएँगे...

7122
मैं आकर दुश्मनोंमें,
बस गया हूँ l
यहाँ हमदर्द हैं,
दो-चार मेरे...ll
राहत इंदौरी

7123
आँखोंसे आँसुओंके,
दो कतरे क्या निकल पड़े...
मेरे सारे दुश्मन,
एकदम खुशीसे उछल पडे़...

7124
दुश्मनभी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक्त बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं l
मेरी गलीसे गुजरते हैं छुपाके खंजर,
रूबरू होनेपर सलाम किया करते हैं ll

7125
बिना मकसद,
बहुत मुश्किल हैं जीना...
खुदा आबाद रखना,
दुश्मनोंको​ मेरे.......!

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