7121
दुश्मनीका सफ़र,
इक क़दम दो क़दम...
तुम भी थक जाओगे,
हम भी थक जाएँगे...
7122मैं आकर दुश्मनोंमें,बस गया हूँ lयहाँ हमदर्द हैं,दो-चार मेरे...llराहत इंदौरी
7123
आँखोंसे आँसुओंके,
दो कतरे क्या निकल पड़े...
मेरे सारे दुश्मन,
एकदम खुशीसे उछल पडे़...
7124दुश्मनभी मेरे मुरीद हैं शायद,वक्त बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं lमेरी गलीसे गुजरते हैं छुपाके खंजर,रूबरू होनेपर सलाम किया करते हैं ll
7125
बिना मकसद,
बहुत मुश्किल हैं जीना...
खुदा आबाद रखना,
दुश्मनोंको मेरे.......!
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