7171
मैं हैराँ हूँ कि,
क्यूँ उससे हुई थी दोस्ती अपनी,
मुझे कैसे गवारा हो गई थी,
दुश्मनी अपनी.......
7172ये दिल लगानेमें मैंने,मज़ा उठाया हैं...मिला न दोस्त तो,दुश्मनसे इत्तिहाद किया...!हैदर अली आतिश
7173
दोस्तीकी तुमने दुश्मनसे,
अजब तुम दोस्त हो...
मैं तुम्हारी दोस्तीमें,
मेहरबाँ मारा गया.......
इम्दाद इमाम असर
7174बहारोंकी नज़रमें,फूल और काँटे बराबर हैं...मोहब्बत क्या करेंगे,दोस्त दुश्मन देखनेवाले.......कलीम आजिज़
7175
दुश्मनोंकी जफ़ाका,
ख़ौफ़ नहीं...
दोस्तोंकी वफ़ासे,
डरते हैं...
हफ़ीज़ बनारसी
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