16 February 2021

7171 - 7175 दिल मोहब्बत वफ़ा गवारा इत्तिहाद मेहरबाँ बहार नज़र दोस्ती दुश्मनी शायरी

 

7171
मैं हैराँ हूँ कि,
क्यूँ उससे हुई थी दोस्ती अपनी,
मुझे कैसे गवारा हो गई थी,
दुश्मनी अपनी.......

7172
ये दिल लगानेमें मैंने,
मज़ा उठाया हैं...
मिला दोस्त तो,
दुश्मनसे इत्तिहाद किया...!
हैदर अली आतिश

7173
दोस्तीकी तुमने दुश्मनसे,
अजब तुम दोस्त हो...
मैं तुम्हारी दोस्तीमें,
मेहरबाँ मारा गया.......
                 इम्दाद इमाम असर

7174
बहारोंकी नज़रमें,
फूल और काँटे बराबर हैं...
मोहब्बत क्या करेंगे,
दोस्त दुश्मन देखनेवाले.......
कलीम आजिज़

7175
दुश्मनोंकी जफ़ाका,
ख़ौफ़ नहीं...
दोस्तोंकी वफ़ासे,
डरते हैं...
                हफ़ीज़ बनारसी

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