2 February 2021

7116 - 7120 दिल तन्हा रिश्ता ख़त्म जालिम शख़्सियत एहतिराम राहत दोस्ती दुश्मनी शायरी

 

7116
दुश्मनी लाख सही,
ख़त्म न कीजे रिश्ता l
दिल मिले या न मिले,
हाथ मिलाते रहिए ll
                 निदा फ़ाज़ली 

7117
हमनशीं, मुझको नहीं राहतसे,
कोई दुश्मनी मगर;
दिलको क्या कहिए कि,
जालिम खूगर--आलाम हैं...
नादिर उल कादिरी

7118
आज खुला,
दुश्मनके पीछे दुश्मन थे,
और वो लश्कर,
इस लश्करकी ओटमें था...
             ग़ुलाम हुसैन साजिद

7119
उसके दुश्मन हैं बहुत,
आदमी अच्छा होगा...
वो भी मेरी ही तरह,
शहरमें तन्हा होगा.......
निदा फ़ाज़ली

7120
मुख़ालिफ़तसे मिरी,
शख़्सियत सँवरती हैं,
मैं दुश्मनोंका बड़ा,
एहतिराम करता हूँ ll
                     बशीर बद्र

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