7136
तड़पते हैं नींदके लिए,
तो यहीं दुआ निकलती हैं...!
बहुत बुरी हैं मोहब्बत,
किसी दुश्मनको भी ना हो...!
7137तेरी गलियोंमें आने जानेसे,दुश्मनी हो गयी ज़मानेसे;सोके दीदार दे रहा हैं,सज़्जा मिलने आजा किसी बहानेसे ll
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इलाही क्यों नहीं उठती कयामत,
माजरा क्या हैं...?
हमारे सामने पहलूमें,
वो दुश्मन बनके बैठे हैं.......!
7139देखा तो वो शख्स भी,मेरे दुश्मनोमें था...!नाम जिसका शामिल मेरी,धड़कनोंमें था.......!!!
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इधर आ रक़ीब मेरे,
मैं तुझे गले लगा लूँ...
मेरा इश्क़ बे-मज़ा था,
तेरी दुश्मनीसे पहले...!
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