5 February 2021

7131 - 7135 जीत नाराज़ क़दर मोहब्बत दोस्ती दुश्मनी शायरी

 

7131
दुश्मन इतनी,
आसानीसे कहाँ मिलते हैं...
बहुत लोगोंका,
भला करना पड़ता हैं.......!

7132
नसीब,
जरा एक बात तो बता...
तु सबको आजमाता हैं,
या मुझसे ही दुश्मनी हैं...?

7133
मेरी नाराज़गीपर,
हक़ मेरे अहबाबका हैं, बस...
दुश्मनसे भी कोई,
कभी नाराज़ होता हैं भला...!

7134
वो जो बनके दुश्मन.
हमे जीतनेको निकले थे...
कर लेते अगर मोहब्बत,
तो हम ख़ुदही हार जाते...!

7135
मैं अपने दुश्मनोंका,
किस क़दर मम्नून हूँ, अनवर...
कि उनके शरसे,
क्या क्या ख़ैरके पहलू निकलते हैं ll
                                       अनवर मसूद

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