12 February 2021

7151 - 7155 रिश्ता गुनाह मुफ्त तकलीफ़ मज़ा साथ क़दम दोस्ती दुश्मनी शायरी

 

7151
दुश्मनी हो जाती हैं,
मुफ्तमें सैंकड़ोंसे...
इंसानका,
बेहतरीन होनाही गुनाह हैं...

7152
दुश्मनी अपनी,
औकात वालोंसे कर...
क्यूंकि खेल बापके,
साथ खेला नहीं जाता...!

7153
दुश्मन और सिगरेटको,
जलानेके बाद;
उन्हे कुचलनेका,
मज़ाही कुछ और होता हैं...!

7154
मै रिश्तोंका,
जला हुआ हूँ...
दुश्मनीभी,
फूँक-फूँककर करता हूँ...

7155
जाती हुई मय्यत देखकेभी,
वल्लाह तुम उठकर सके...
दो चार क़दम तो दुश्मनभी,
तकलीफ़ गवारा करते हैं.......!

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