7151
दुश्मनी हो जाती हैं,
मुफ्तमें सैंकड़ोंसे...
इंसानका,
बेहतरीन होनाही गुनाह हैं...
7152दुश्मनी अपनी,औकात वालोंसे कर...क्यूंकि खेल बापके,साथ खेला नहीं जाता...!
7153
दुश्मन और सिगरेटको,
जलानेके बाद;
उन्हे कुचलनेका,
मज़ाही कुछ और होता हैं...!
7154मै रिश्तोंका,जला हुआ हूँ...दुश्मनीभी,फूँक-फूँककर करता हूँ...
7155
जाती हुई मय्यत देखकेभी,
वल्लाह तुम उठकर आ न सके...
दो चार क़दम तो दुश्मनभी,
तकलीफ़ गवारा करते हैं.......!
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