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हम मुसाफ़िर हैं गर्द-ए-सफ़र हैं,
मगर ऐ शब-ए-हिज्र हम कोई बच्चे नहीं;
जो अभी आँसुओंमें नहाकर गए,
और अभी मुस्कुराते पलट आएँगे ll
ग़ुलाम हुसैन साजिद
6937गमके मारे जो मुस्कुराए हैं,आँसुओंको भी पसीने आए हैं,क्या बला हैं ख़ुशी नहीं मालूम...हमतो बस नाम सुनते आए हैं ll
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ग़मोसे उलझकर मुस्कुराना,
मेरी आदत हैं l
मुझे नाकामियोंपें,
आँसू बहाना नहीं आता...ll
6939जाने कब गुम हुआ,कहाँ खोया...इक आँसू,छुपाके रखा था...
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तेरी जुबानने कुछ,
कहा तो नहीं था...
फिर न जाने क्यों मेरी,
आँख नम हो
गयी.......