22 December 2020

6936 - 6940 आँसू आदत बहाना हिज्र सफ़र मुसाफ़िर ख़ुशी नमी ग़म शायरी

 

6936
हम मुसाफ़िर हैं गर्द--सफ़र हैं,
मगर शब--हिज्र हम कोई बच्चे नहीं;
जो अभी आँसुओंमें नहाकर गए,
और अभी मुस्कुराते पलट आएँगे ll
                                     ग़ुलाम हुसैन साजिद

6937
गमके मारे जो मुस्कुराए हैं,
आँसुओंको भी पसीने आए हैं,
क्या बला हैं ख़ुशी नहीं मालूम...
हमतो बस नाम सुनते आए हैं ll

6938
ग़मोसे उलझकर मुस्कुराना,
मेरी आदत हैं l
मुझे नाकामियोंपें,
आँसू बहाना नहीं आता...ll

6939
जाने कब गुम हुआ,
कहाँ खोया...
इक आँसू,
छुपाके रखा था...

6940
तेरी जुबानने कुछ,
कहा तो नहीं था...
फिर जाने क्यों मेरी,
आँख नम हो गयी.......

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