28 December 2020

6966 - 6970 नख़रे नाराज़ फ़िक्र ज़माने ख़ुशी ग़म शायरी

 

6966
ख़ुशियाँ बहुत सस्ती हैं,
इस ज़मानेमें...
हमही ढुँढते हैं,
उसे महँगी दुकानोमें.......

6967
नाराज़ हमेशा,
ख़ुशियाँही होती हैं...
ग़मोंके इतने,
नख़रे नहीं होते.......

6968
ख़ुशियोंका क्या हैं,
कोई कह दे कि...
'पतले लग रहे हो',
तो मिल जाती हैं...!

6969
किसने कहा था की,
ख़ुशियाँ बाँटनेसे बढती हैं...l
आजकल ख़ुशियाँ बाँट दो तो,
दुश्मन बढ़ जाते हैं.......ll

6970
फ़िक्रसे आज़ाद थे और...
ख़ुशियाँ इक़ट्ठी होती थीं...!
वो भी क्या दिन थे,
जब अपनी भी...
गर्मियोंकी छुट्टियाँ होती थीं...ll

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