18 December 2020

6916 - 6920 इन्तजार गवाही बेबसी यादें शिद्दत बेबसी इन्तजार तड़प आँख अश्क़ शायरी

 

6916
तुमने पौंछेही नहीं,
अश्क़ मेरी आँखोंसे...
मैंने खुद रो के बहुत देर,
हँसाया था तुम्है.......

6917
तुम्हारी यादकी शिद्दतमें,
बहनेवाला अश्क़,
ज़मींमें बो दिया जाएँ,
तो आँख उग आएँ.......!

6918
वापस ले लो वो सारी यादें,
तड़प और अश्क़...
जुर्म कोई नही हैं मेरा,
तो फिर ये सज़ा कैसी.......?

6919
खुद अपनी बेबसीकी,
उड़ाई हैं यूँ हँसी...
आये जो अश्क़ आँखोंमें,
हम मुस्कुरा दिये.......

6920
इन्तजारका वो अश्क़,
मेराही हैं ;
तेरी भीगी आस्तीन,
मेरे इश्ककी गवाही हैं आजभी ll

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