12 December 2020

6891 - 6895 मंजिल चाहत प्यास शौक हकीक़त आँख आँसू मुलाकात आँसू शायरी

 

6891
वो कहके चले इतनी मुलाकात बहुत हैं,
मैंने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत हैं...
आँसू मेरे थम जाये तो फिर शौकसे जाना,
ऐसेमें कहाँ जाओगे बरसात बहुत हैं.......

6892
शायद तू कभी प्यासा,
मेरी तरफ़ लौट आए, फ़राज़;
आंखोंमें लिए फिरता हूँ,
दरिया तेरी ख़ातिर.......
अहमद फ़राज़

6893
सदफकी क्या हकीक़त हैं,
अगर उसमें हो गौहर...
क्यों कर आबरू हो,
आँखकी मौकूफ आँसूपर...!

6894
आँखोंसे आँसुओंके,
मरासिम पुराने हैं...
मेहमां ये घरमें आएं,
तो चुभता नहीं धुआँ.......
गुलज़ार

6895
वो नदियाँ नहीं आँसू थे मेरे,
जिसपर वो कश्ती चलाते रहे;
मंजिल मिले उन्हें ये चाहत थी मेरी,
इसलिए हम आँसू बहाते रहे;
मेहमाँ ये घरमें आएँ तो चुभता नहीं धुआँ,
बहाए होंगे सितारोंने आँसू रातभर ll

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