30 December 2020

6971 - 6975 दिल फ़र्क़ बात उजाला मुक़ाम कफ़न ख़ुशी ग़म शायरी

 

6971
अब क्या करें उमीदकी,
इस काली रातके बाद उजाला होगा;
चन्द ख़ुशियोंके सहारे,
कफ़न अपना बना रहे हैं ll
 
6972
चार दिनकी बात हैं,
क्या दुश्मनी, क्या दोस्ती...
काट दो इसको ख़ुशीसे,
यार हँसते हँसते.......!
गुमनाम भरतपुरी

6973
मेरे बटुएमें तुम पाओगे,
अक्सर नोट ख़ुशियोंके...!
मैं सब चिल्लर उदासीके,
अलग गुल्लकमें रखता हूँ...!!!

6974
जैसे उसका कभी,
ये घर ही था...
दिलमें बरसों,
ख़ुशी नहीं आती...

6975
ग़म और ख़ुशीमें,
फ़र्क़ महसूस हो जहाँ,
मैं दिलको उस मुक़ामपें,
लाता चला गया.......

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