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अब क्या करें उमीदकी,
इस काली रातके बाद उजाला होगा;
चन्द ख़ुशियोंके सहारे,
कफ़न अपना बना रहे हैं ll
6972चार दिनकी बात हैं,क्या दुश्मनी, क्या दोस्ती...काट दो इसको ख़ुशीसे,यार हँसते हँसते.......!गुमनाम भरतपुरी
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मेरे बटुएमें तुम पाओगे,
अक्सर नोट ख़ुशियोंके...!
मैं सब चिल्लर उदासीके,
अलग गुल्लकमें रखता हूँ...!!!
6974जैसे उसका कभी,ये घर ही न था...दिलमें बरसों,ख़ुशी नहीं आती...
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ग़म और ख़ुशीमें,
फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ,
मैं दिलको उस मुक़ामपें,
लाता चला गया.......