19 December 2020

6921 - 6925 वक्त बेवफाई लफ़्ज़ जुदाई दर्द तबस्सुम रुख़सार आँख अश्क़ शायरी

 

6921
उसकी जुदाईको लफ़्ज़ोंमें,
कैसे बयान करें...
वो रहती दिलमें,
धडकती दर्दमें और,
बहती अश्क़में.......

6922
गिरा पलकोंसे,
अश्क़ तो सोचा ना था;
रुख़सारपर हाथ तेरे,
संभाल लेंगे उन्हें.......

6823
ना देख पीछे मुड़कर,
वक्तको वो गुजर गया...
सुनो हथेलीमें एक बूँद अश्क़की,
कब तक संभालोगे.......

6924
किसी चेहरेपें तबस्सुम,
किसी आँखमें अश्क़,
अजनबी शहरमें अब,
कौन दोबारा जाये...?

6925
अश्क़ गिरे मेरे,
जो उसके पहलूमें,
बेवफाई इस शहरमें,
फिर आम हो गई.......

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