26 December 2020

6956 - 6960 दिल ख़ुशी फिक्र लिबास ख़िज़ाँ बहार बरकत महसूस खुशी ग़म शायरी

 

6956
हुए जो खूगर--गम ऐशका,
उनपर असर क्या हो...?
खुशीको वो खुशी समझें,
जो गमको गम समझते हैं...!
                       जोश मल्सियानी

6957
मेरी ख़ुशी तो मेरे,
गमोंका लिबास हैं...
लेकिन बरकतें इतना,
कहाँ गमशनास हैं......

6958
मैं जिन्दगीका साथ निभाता चला गया,
हर फिक्रको धुएंमें उड़ाता चला गया;
जो मिल गया उसीको मुकद्दर समझ लिया,
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया;
गम और खुशीमें फर्क महसूस हो जहाँ,
मैं दिलको उस मुकाममें लाता चला गया;
बर्बादियोंका सोग मनाना फिजूल था,
बर्बादियोंका जश्न मनाता चला गया ll
                                        साहिर लुधियानवी

6959
हजार गम सही दिलमें,
खुशी मगर यह हैं.......
हमारे होठोंपर माँगीहुई,
हँसी तो नहीं हैं.......?

6960
हो दौर--गमकि अहदे-खुशी,
दोनों एक हैं...
दोनों गुजश्तनी हैं,
ख़िज़ाँ क्या, बहार क्या...?
                       त्रिलोक चन्द महरूम

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