6901
अश्क बनकर आँखोंसे बहते हैं,
बहती आँखोंसे उनका दीदार करते हैं...
माना की ज़िंदगीमें उन्हे पा नहीं सकते,
फिरभी हम उनसे बहुत प्यार करते हैं...!
6902मुस्कुरानेकी आरजूमें,छुपाया जो दर्दको...अश्क हमारी आँखोंमें,पत्थरके हो गए.......
6903
अश्क बनकर आई हैं,
वह इल्तिजाएँ चश्मतक...
जिनको कहनेके लिए,
होठोंपें गोयाई नहीं...
6904उस अश्ककी तासीरसे,अल्लाह बचाये...जो अश्क आँखोंमें रहें,और न बरसे.......
6905
फ़िर आज अश्क़से,
आँखोंमें क्यूँ हैं आए हुए...
गुज़र गया हैं ज़माना,
तुझे भुलाए हुए.......
फ़िराक गोरखपुरी
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