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26 February 2022

8286 - 8290 आँख़े दिल लफ़्ज़ रिश्ता महफ़िल नग़्मात आँसू क़ामियाब ज़ज़्बात शायरी

 

8286
लफ़्ज़ोंमें बटोर लूँ,
सारे ज़ज़्बातक़ो...
यह मुमक़िन नहीं,
रिश्तोंक़े दरमियाँ...

8287
महफ़िलें लुट ग़ईं,
ज़ज़्बातने दम तोड़ दिया l
साज़ ख़ामोश हैं,
नग़्मातने दम तोड़ दिया ll
साग़र सिद्दीक़ी

8288
तुम्हारे भीतर ज़ो हैं अनक़हें,
ज़ज़्बात समझती हूँ...
भले तुम नासमझ समझो,
मग़र हर बात समझती हूँ...!!!

8289
पढ़ेलिख़े लाख़ों निक़ले,
इन दिलक़ी ग़लियोंसे...
मग़र क़ोई इनक़ी दीवारोंपर लिख़े,
ज़ज़्बातोंक़ो पढ़नेमें क़ामियाब ना हुआ...

8290
आँख़ोंसे आँसू नहीं,
ज़ज़्बात बहते ग़ए...
क़ोई समझ ना सक़ेग़ा तुझे,
ग़िरनेसे पहले वो क़हते ग़ए.......