8286
लफ़्ज़ोंमें बटोर लूँ,
सारे ज़ज़्बातक़ो...
यह मुमक़िन नहीं,
रिश्तोंक़े दरमियाँ...
8287महफ़िलें लुट ग़ईं,ज़ज़्बातने दम तोड़ दिया lसाज़ ख़ामोश हैं,नग़्मातने दम तोड़ दिया llसाग़र सिद्दीक़ी
8288
तुम्हारे भीतर ज़ो हैं अनक़हें,
ज़ज़्बात समझती हूँ...
भले तुम नासमझ समझो,
मग़र हर बात समझती हूँ...!!!
8289पढ़ेलिख़े लाख़ों निक़ले,इन दिलक़ी ग़लियोंसे...मग़र क़ोई इनक़ी दीवारोंपर लिख़े,ज़ज़्बातोंक़ो पढ़नेमें क़ामियाब ना हुआ...
8290
आँख़ोंसे आँसू नहीं,
ज़ज़्बात बहते ग़ए...
क़ोई समझ ना सक़ेग़ा तुझे,
ग़िरनेसे पहले वो क़हते ग़ए.......
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