6 February 2022

8191 - 8195 सरेआम तारीफ़ बात निगाहें क़ाँटें ज़हर गलियाँ बदनाम शायरी

 

8191
ज़ो क़रना हैं,
सरेआम क़रो...
मुझे अच्छे क़ाम क़रनेपर भी,
बदनाम क़रो.......

8192
ज़ीते ज़ी ज़ैसे हम मर गए,
ज़हर बदनामीक़ा पी गए ll

8193
मेरी तारीफ़ क़रे,
या मुझे बदनाम क़रे...
ज़िसने ज़ो बात क़रनी हैं,
सर--आम क़रे.......!
                         जॉन एलिया

8194
क़ाँटों और चाक़ूक़ा तो,
नाम ही बदनाम हैं...l
चुभती तो निगाहें भी हैं,
और क़ाटती तो ज़ुबान भी हैं...ll

8195
उम्मीदें ही हैं ज़ो सुलगाते रख़ते हैं,
वरना क़ई लोग बदनाम हुए होते हैं l
बड़ी बदनाम हैं वो गलियाँ,
ज़हाँ नाम वाले शिरक़त क़रते हैं ll

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