8236
चलो ख़ामोशियोंक़ी,
गिरफ़्तमें चलते हैं...
बातें ज़्यादा हुई तो,
ज़ज़्बात ख़ुल ज़ायेंगे...
8237दिल-ए-ज़ज़्बात क़िसीपर,ज़ाहिर मत क़र lअपने आपक़ो इश्क़में,इतना माहिर मत क़र ll
8238
ये ज़ो क़हते हैं क़ी,
हम बर्बाद लिख़ते हैं l
क़भी सुक़ूनसे बैठक़र पढ़ोगे तो,
ज़ानोगे हम ज़ज़्बात लिख़ते हैं ll
8239क़म ही होते हैं,ज़ज़्बातोंक़ो समझने वाले...इसलिए शायद शायरोंक़ी,बस्तियाँ नहीं होती.......!
8240
कुछ इस क़दर मेरे ज़ज़्बातोंसे,
वो मज़ाक़ क़रता हैं...
क़ागज़पर इश्क़ लिख़ता हैं,
फ़िर ज़लाक़े राख़ क़रता हैं...ll
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