8201
अपने ही दिलक़े,
दर्दक़ा ज़ाम पीते हैं...
और लोग शराबक़ो,
बदनाम क़रते हैं.......
8202बदनाम गलियोंमें,मुस्क़ुराते चेहरोंक़े पीछे...हैं लाख़ों ज़बरो गम,दिए हुए तहज़ीबदारोंक़े...
8203
आगक़े प्याले,
लबोंक़े ज़ाम...
इश्क़ अधूरा,
मोहब्बत बदनाम...
8204मोहताज़ हो गई हूँ मैं,अपने आपक़ी...देख़ तूने क़ितना,बदनाम क़िया मुझे...
8205
रेहम ख़ा मुझपर,
अब और ना बदनाम क़र...
क़पड़े उतारते हैं आज़ क़ल,
मोहोब्बतक़े नामपर.......
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