21 February 2022

8256 - 8260 तूफ़ान बरसात दरिया समंदर ज़िस्म अल्फ़ाज़ दर्द रूह ज़ज़्बात शायरी

 

8256
दरिया बन मिलते रहें,
समंदरक़े पानीसे...
ज़ज़्बात ही ख़ो ग़यी,
मचलती रवानीमें.......

8257
दर्द मिट्टीक़े घरोंक़ा,
क़हाँ बरसात समझे हैं l
क़ाम ज़िसक़ा हो सताना,
क़हाँ ज़ज़्बात समझे हैं ll

8258
ज़ब भी ज़ज़्बातक़ा,
तूफ़ान आए,
मेरे अल्फ़ाज़,
बहाक़र ले ज़ाए...
                  विज़य अरुण

8259
ज़िसमे फ़ना हैं,
क़ई ज़ज़्बातक़े समंदर...
वही एक़ क़तरा,
इश्क़ हूँ मैं.......

8260
मिरे ज़ज़्बातसे,
ये रात पिघल ज़ाएगी...
ज़िस्म तो ज़िस्म,
तिरी रूह भी ज़ल ज़ाएगी...
                         शक़ील हैदर

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