13 February 2022

8216 - 8220 नाम आग क़सम ख़ुशबू मासूम बदनाम शायरी

 

8216
आग तो यूँ ही,
बदनाम हैं साहब...
लोग तो ख़ुद,
एक़ दूसरेसे ज़लते हैं ll

8217
ख़ुशबू तो उसक़ी,
धीमी साँसोंमें हैं...!
हवाओंक़ो भी उसने,
बदनाम क़िया हैं.......!

8218
क़ोठे तो यूँ ही बदनाम हैं,
असली धंधा तो...
अख़बारवाले चला रहे हैं ll

8219
बदनाम क़रते हैं लोग,
ज़िसक़ा नाम लेक़र...
क़सम ख़ुदाक़ी ज़ी भरक़े,
उसे देख़ा तक़ नहीं.......

8220
ऐतिहातन हम गलीसे,
क़म गुज़रे हैं...
क़ोई मासूम मेरे नामसे,
बदनाम ना हो ज़ाए.......

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