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नमकीं गोया कबाब हैं,
फीके शराबके...
बोसा हैं तुझ लबाँका,
मज़े-दार चटपटा......!
आबरू शाह मुबारक
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जीमें हैं
इतने,
बोसे लीजे कि
आज...
महर उसके,
वहाँसे उठ जावे...
मुसहफ़ी
ग़ुलाम हमदानी
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लब-ए-नाज़ुकके बोसे लूँ तो,
मिस्सी मुँह बनाती हैं l
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो,
मेहंदी रंग लाती हैं ll
आसी ग़ाज़ीपुरी
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एक बोसेके तलबगार हैं
हम,
और माँगें तो गुनहगार
हैं हम...
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बोसेमें होंट उल्टा,
आशिक़का काट खाया ;
तेरा दहन मज़े सीं पुर हैं,
पे हैं कटोरा.......
आबरू शाह मुबारक