18 July 2020

6191 - 6195 आशिक़ तलबगार गुनहगार लब होंट शराब बोसे शायरी


6191
नमकीं गोया कबाब हैं,
फीके शराबके...
बोसा हैं तुझ लबाँका,
मज़े-दार चटपटा......!
         आबरू शाह मुबारक

6192
जीमें हैं इतने,
बोसे लीजे कि आज...
महर उसके,
वहाँसे उठ जावे...
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

6193
लब--नाज़ुकके बोसे लूँ तो,
मिस्सी मुँह बनाती हैं l
कफ़--पा को अगर चूमूँ तो,
मेहंदी रंग लाती हैं ll
                          आसी ग़ाज़ीपुरी

6194
एक बोसेके तलबगार हैं हम,
और माँगें तो गुनहगार हैं हम...

6195
बोसेमें होंट उल्टा,
आशिक़का काट खाया ;
तेरा दहन मज़े सीं पुर हैं,
पे हैं कटोरा.......
                 आबरू शाह मुबारक

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