20 July 2020

6201 - 6205 दिल इश्क़ ख़ामोशियाँ सब्र मुहब्बत गम बज़्म दुनिया पनाह आँख नयन लब शायरी


6201
लबोंको सी के जो बैठे हैं,
बज़्मे-दुनियामें...
कभी तो उनकी भी,
ख़ामोशियाँ सुनो तो सही...

6202
लबोंतक आकर भी,
जो ज़ुबापर नही आता...
मुहब्बतमें सब्रका,
वो मुक़ाम इश्क़ हैं.......

6203
इशकके चाँदको,
अपनी पनाहमें रहने दो...
आज लबोंको ना खोलो,
बस आँखोंको कहने दो...

6204
सीनए-नय पै जो गुजरती हैं...
वह लबे-नयनवाज क्या जाने...

6205
कल जो अपने थे अब पराये हैं,
क्या सितम आसमाँने ढाये हैं,
दिल दुखा होंठ मुस्कराये हैं,
हमने ऐसे भी गम उठाये हैं ll
                        बेताब अलीपुरी

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