30 July 2020

6251 - 6255 सलीके एतबार ख़ौफ़ उम्र होश क़ैद बात जाम मय शायरी


6251
वाइज़ मोहतसिबका,
जमघट हैं...
मय-कदा अब तो,
मय-कदा रहा.......
                       बेखुद बदायुनी

6252
हमारा जाम खाली हैं,
तो कोई बात नहीं...
यह एतबार तो हैं,
कि मय-कदा हमारा हैं...

6253
जब मय-कदा छुटा तो,
फिर अब क्या जगहकी क़ैद;
मस्जिद हो मदरसा हो,
कोई ख़ानक़ाह हो.......
                           मिर्ज़ा ग़ालिब

6254
होश आनेका था,
जो ख़ौफ़ मुझे...
मय-कदेसे,
न उम्र भर निकला...
जलील मानिकपूरी

6255
सलीकेसे जिन्हें एक,
घूंट भी पीना नहीं आता l
वह इतने हैं कि सारे,
मय-कदेमें छाए बैठे हैं ll

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