6251
वाइज़ ओ मोहतसिबका,
जमघट हैं...
मय-कदा अब तो,
मय-कदा न रहा.......
बेखुद बदायुनी
6252
हमारा जाम खाली
हैं,
तो कोई बात
नहीं...
यह एतबार तो हैं,
कि मय-कदा
हमारा हैं...
6253
जब मय-कदा छुटा तो,
फिर अब क्या जगहकी क़ैद;
मस्जिद हो मदरसा हो,
कोई ख़ानक़ाह हो.......
मिर्ज़ा ग़ालिब
6254
होश आनेका था,
जो ख़ौफ़ मुझे...
मय-कदेसे,
न उम्र भर
निकला...
जलील मानिकपूरी
6255
सलीकेसे जिन्हें एक,
घूंट भी पीना नहीं आता l
वह इतने हैं कि सारे,
मय-कदेमें छाए बैठे
हैं ll