6131
इन पत्थरोंके शहरमें,
जीना मुहाल हैं;
हर शख़्स कह रहा हैं,
मुझे देवता कहो...ll
6132
खुदको बिखरने मत देना,
कभी किसी हालमें...
लोग गिरे हुए
मकानकी,
ईंटे तक ले
जाते हैं.......
6133
पूछा जो हाल शहरका,
तो सर झुकाके कहाँ,
लोग तो जिंदा हैं...
जमीरोंका पता नही.......
6134
हालात-ए-मुल्क
देखके,
रोया न गया...
कोशिश तो की
पर,
मुँह ढकके सोया
न गया...
6135
इब्तिदा वो थी कि,
जीना था मोहब्बतमें मुहाल...
इंतिहा ये हैं कि अब,
मरना भी मुश्किल हो गया...!
जिगर मुरादाबादी
No comments:
Post a Comment