6141
कैफे-निशाते-दर्दका,
आलम न पूछिए...
हंसकर गुजार दी हैं,
शबे-गम कभी-कभी...
शकील बदायुनी
6142
रस्तेमें हर कदमपें,
खराबात हैं अदम...
यह हाल हैं तो,
किस तरह दामन बचाइए...
अब्दुल हमीद अदम
6143
क्या पूछते हो,
अकबर-ए-शोरीदा-सरका हाल,
ख़ुफ़िया पुलिससे पूछ रहा हैं,
कमरका हाल.......
अकबर इलाहाबादी
6144
अजब ये हाल किया,
मिलके मछलियोंने मेरा...
बड़े तपाकसे हाथोंका,
जाल छीन लिया.......!
6145
अजब हाल हैं,
आदमीकी शख्शियतका;
हवस खुदकी उठती हैं,
तवायफ उसको कहता हैं...
No comments:
Post a Comment