10 July 2020

6151 - 6155 आसमाँ ज़माने ग़म दुनिया आबाद दवा बरसात मुफ़लिसी शायरी


6151
मुफ़लिसी सीं अब ज़मानेका,
रहा कुछ हाल नईं...
आसमाँ चर्ख़ीके जूँ फिरता हैं,
लेकिन माल नईं.......
                       आबरू शाह मुबारक

6152
मुफ़लिसी भूकको,
शहवतसे मिला देती हैं...
गंदुमी लम्समें हैं,
ज़ाइक़ा-ए-नान-ए-जवीं...
अब्दुल अहद

6153
ग़मकी दुनिया,
रहे आबाद शकील...
मुफ़लिसीमें कोई,
जागीर तो हैं.......!
             शकील बदायुनी

6154
मुफ़लिसीमें मिज़ाज शाहाना,
किस मरज़की दवा करे कोई...
यगाना चंगेज़ी

6155
अब ज़मीनोंको बिछाए कि,
फ़लकको ओढ़े...
मुफ़लिसी तो भरी बरसातमें,
बे-घर हुई हैं.......
                            सलीम सिद्दीक़ी

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