27 July 2020

6236 - 6240 याद बज़्म जन्नत शराब पैमाने साक़ी तरस मय शायरी


6236
मय-ख़ानेमें क्यूँ,
याद--ख़ुदा होती हैं अक्सर...
मस्जिदमें तो,
ज़िक्र--मय--मीना नहीं होता...
                              रियाज़ ख़ैराबादी

6237
ये मय-ख़ाने हैं,
बज़्म-ए-जम नहीं हैं;
यहाँ कोई किसीसे,
कम नहीं हैं...ll
जिगर मुरादाबादी

6238
मय-ख़ानेमें मज़ार,
हमारा अगर बना...!
दुनिया यही कहेगी कि,
जन्नतमें घर बना...!!!
                रियाज़ ख़ैराबादी

6239
ऐ मुसहफ़ी अब चखियो,
मज़ा ज़ोहदका...
तुमने मय-ख़ानेमें जा जाके,
बहुत पी हैं शराबें.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

6240
दूरसे आए थे साक़ी,
सुनके मय-ख़ानेको हम...
बस तरसते ही चले,
अफ़्सोस पैमानेको हम...
                 नज़ीर अकबराबादी

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