6236
मय-ख़ानेमें क्यूँ,
याद-ए-ख़ुदा होती हैं अक्सर...
मस्जिदमें तो,
ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता...
रियाज़ ख़ैराबादी
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ये मय-ख़ाने
हैं,
बज़्म-ए-जम
नहीं हैं;
यहाँ कोई किसीसे,
कम नहीं हैं...ll
जिगर मुरादाबादी
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मय-ख़ानेमें मज़ार,
हमारा अगर बना...!
दुनिया यही कहेगी कि,
जन्नतमें घर बना...!!!
रियाज़ ख़ैराबादी
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ऐ मुसहफ़ी अब चखियो,
मज़ा ज़ोहदका...
तुमने मय-ख़ानेमें
जा जाके,
बहुत पी हैं
शराबें.......
मुसहफ़ी
ग़ुलाम हमदानी
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दूरसे आए थे साक़ी,
सुनके मय-ख़ानेको हम...
बस तरसते ही चले,
अफ़्सोस पैमानेको हम...
नज़ीर अकबराबादी