6211
हम तो समझे थे कि,
बरसातमें बरसेगी शराब...
आई बरसात तो,
बरसातने दिल तोड़ दिया...
सुदर्शन फ़ाकिर
6212
तमाम रात वो
पहलूको,
गर्म करता रहा...
किसीकी यादका नश्शा,
शराब जैसा था.......!
अबरार आज़मी
6213
मुद्दतसे आरज़ू हैं,
ख़ुदा वो घड़ी करे...
हम तुम पिएँ जो,
मिलके कहीं एक जा शराब...
शैख़ जहूरूद्दीन
6214
भी बचा न
कहनेको,
हर बात हो
गई...
आओ कहीं शराब
पिएँ,
रात हो गई.......
निदा फ़ाज़ली
6215
ग़ालिब छुटी शराब पर,
अब भी कभी कभी पीता हूँ...
रोज़-ए-अब्र ओ,
शब-ए-माहताबमें.......!
मिर्ज़ा ग़ालिब
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