29 July 2020

6246 - 6250 रूह प्यास साग़र फितरत नज्जारा सफ़र हयात राह साक़ी मय शायरी


6246
बहार आते ही टकराने लगे,
क्यूँ साग़र मीना...
बता पीर--मय-ख़ाना,
ये मय-ख़ानोंपे क्या गुज़री...
                        जगन्नाथ आज़ाद

6247
फितरतके हसीं नज्जारोंमें,
पुरकैफ खजाने और भी हैं...
मय-खाना अगर वीराँ है तो क्या,
रिन्दोंके ठीकाने और भी हैं.......
शकील बदायुनी

6248
रूह किस मस्तकी,
प्यासी गई मय-ख़ानेसे...
मय उड़ी जाती हैं,
साक़ी तिरे पैमानेसे...!
                         दाग़ देहलवी

6249
ये कह दो हज़रत-ए-नासेहसे,
गर समझाने आए हैं;
कि हम दैर ओ हरम होते हुए,
मय-ख़ाने आए हैं ll

6250
मैं मय-कदे की राहसे,
होकर निकल गया l
वर्ना सफ़र हयातका,
काफ़ी तवील था ll
            अब्दुल हमीद अदम

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