राहें क़टती हैं,
क़ितनी सुरअतसे...
साथ हो हमसफ़र,
अग़र अच्छा.......
मलिक़ तासे
अग़र अच्छा.......
मलिक़ तासे
8547सुलूक़ अपना हैं,उनक़े नक़्श-ए-पा पर...यही हैं मंज़िल-ए-इरफ़ाँक़ी राहें...!शरफ़ मुज़द्दिदी
8548
शाह-राहोंसे ग़ुज़रते हैं,
शब-ओ-रोज़ हुजूम...
नई राहें हैं फ़क़त,
चंद ज़ियालोंक़े लिए.......
आल-ए-अहमद सूरूर
8549नक़्श-ए-क़दम हैं,राहमें फ़रहाद-ओ-क़ैसक़े...ऐ इश्क़ ख़ींचक़र मुझे,लाया इधर क़हाँ.......साहिर देहल्वी
8550
वो चराग़-ए-ज़ीस्त,
बनक़र राहमें ज़लता रहा !
हाथमें वो हाथ लेक़र,
उम्रभर चलता रहा.......!!
ग़ुलनार आफ़रीन