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25 March 2022

8416 - 8420 इश्क़ मोहब्बत बेवफ़ा इल्जाम अंज़ाम अंज़ान ज़ान शायरी

 

8416
ले चला ज़ान मेरी,
रूठक़े ज़ाना तेरा...
ऐसे आनेसे तो बेहतर था,
आना तेरा.......

8417
वो इश्क़में शायद हमारा,
इम्तिहान ले रहे हैं...
लेक़िन उन्हें क़्या मालूम,
वो हमारी ज़ान ले रहे हैं...

8418
अगर मैं अपनी,
मोहब्बतक़ा अंज़ाम ज़ानता...
तो मैं क़िसी बेवफ़ाक़ो,
क़्यों दिलों-ज़ान मानता.......

8419
ज़ान क़हक़र भी वो ज़ान पाएँ,
आज़तक़ वो मुझे पहचान पाएँ,
ख़ुद ही क़र ली बेवफाई हमने,
ताक़ि उनपर क़ोई इल्जाम आएँ ll

8420
क़ितने अज़ीब होते हैं,
ये मोहब्बतक़े रिवाज़...
लोग़ आपसे 'तुम', तुमसे 'ज़ान',
और ज़ानसे 'अंज़ान' बन ज़ाते हैं...!