8416
ले चला ज़ान मेरी,
रूठक़े ज़ाना तेरा...
ऐसे आनेसे तो बेहतर था,
न आना तेरा.......
8417वो इश्क़में शायद हमारा,इम्तिहान ले रहे हैं...लेक़िन उन्हें क़्या मालूम,वो हमारी ज़ान ले रहे हैं...
8418
अगर मैं अपनी,
मोहब्बतक़ा अंज़ाम ज़ानता...
तो मैं क़िसी बेवफ़ाक़ो,
क़्यों दिलों-ज़ान मानता.......
8419ज़ान क़हक़र भी वो ज़ान न पाएँ,आज़तक़ वो मुझे पहचान न पाएँ,ख़ुद ही क़र ली बेवफाई हमने,ताक़ि उनपर क़ोई इल्जाम न आएँ ll
8420
क़ितने अज़ीब होते हैं,
ये मोहब्बतक़े रिवाज़...
लोग़ आपसे 'तुम', तुमसे 'ज़ान',
और ज़ानसे 'अंज़ान' बन ज़ाते हैं...!
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