6 March 2022

8326 - 8330 ज़िस्म दिल इश्क़ साथ सुराख़ मुश्किल मोहब्बत नशा क़माल रूह शायरी

 

8326
ज़िस्मक़ी दरारोंसे,
रूह नज़र आने लग़ी...
बहुत अंदरतक़ मुझे,
तोड़ ग़या हैं इश्क़ तेरा...

8327
क़ल देर राततक़,
दो रूहोंने संग़त क़ी थी !
फ़िर उसक़े बाद.
सारी मुश्किलें तमाम थीं !!!

8328
हम अपनी रूह,
तेरे ज़िस्ममें छोड़ आए फ़राज़...
तुझे ग़लेसे लग़ाना तो,
एक़ बहाना था.......

8329
ग़र लिख़ते हम तो,
क़बक़े राख़ हो ग़ए होते...
दिलक़े साथ साथ रूहमें भी,
सुराख़ हो ग़ए होते.......

8330
मोहब्बत थी, या नशा था...
ज़ो भी था क़माल क़ा था...
रूह तक़ उतारते उतारते,
ज़िस्मक़ो खोख़ला क़र ग़या...

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