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ज़ो ग़ैरक़े ज़ज़्बातक़ी,
ताज़ीम क़रेग़ा...
वो अपनी ख़ताओंक़ो भी,
तस्लीम क़रेग़ा.......
मंज़ु क़छावा अना
8297फ़क़त लफ़्ज़ोंक़ा तमाशा हैं,ये ज़हाँ क़ाफ़िर ;ज़ज़्बात तो ख़ामोशीमें भी,बयाँ हो ज़ाते हैं ll
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हर तरहक़े ज़ज़्बातक़ा,
ऐलान हैं आँखें...!
शबनम क़भी शोला,
क़भी तूफ़ान हैं आँख़ें...!!!
साहिर लुधियानवी
8299ज़ज़्बात ज़ो मेंरे क़भी,समझ सक़ी हीं नहीं...मैं क़ह दूँ क़ैसे,क़ल फ़िक्र होग़ी उसक़ो मेरी...
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ऐसा नहीं क़ि उनसे,
मोहब्बत नहीं रहीं...
ज़ज़्बातमें वो पहलीसी,
शिद्दत नहीं रहीं.......
ख़ुमार बाराबंक़वी
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