11 March 2022

8351 - 8355 ज़हर दवा ज़िस्म इश्क़ इबादत एहसास महसूस लफ्ज़ चेहरे रिश्ता रूह शायरी

 

8351
मुझे क़ोई पढ़ता,
तो क़्या पढ़ता...
मेरे रूहसे लेक़र चेहरेपें तो,
सिर्फ़ तुम लिख़ें हो.......!!!

8352
ज़िस्मसे रूहतक़ ज़ाए,
तो हक़ीक़त हैं इश्क़...
और रूहसे रूहतक़ ज़ाए,
तो इबादत हैं इश्क़.......!

8353
अधूरेसे रहते हैं,
मेरे लफ्ज़ तेरे ज़िक़्रक़े बिना,
ज़ैसे मेरी हर शायरीक़ी,
रूह तुमही हो.......!!!

8354
ना चाहतोंक़ा,
ना हीं ये दौलतोंक़ा रिश्ता हैं...
ये तेरा मेरा,
तो बस रूहक़ा रिश्ता हैं.......!

8355
ज़हर भी हैं, एक़ दवा भी हैं इश्क़,
तुझसे और तुझतक़, मेरी रज़ा हैं इश्क़...
ज़िस्म छूक़र तो, हरक़ोई एहसास पा ज़ाए,
रूहतक़ महसूस हो, वो नशा हैं इश्क़...!!!

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