8 March 2022

8336 - 8340 ज़िस्म दिल दामन दर्द ज़िंदग़ी प्यास अल्फ़ाज़ ज़ख़्म मोहब्बत तबाह दस्तक़ रूह शायरी

 

8336
ज़िस्म पिघलता हैं,
रूह तबाह होती हैं,
दिलोंक़े टूटनेक़ी क़हीं,
क़ोई आवाज़ नहीं होती...

8337
यक़ीनन तुमने रूहतक़,
दस्तक़ दी होगी...
सुना हैं, दिलतक़ दस्तक़ देनेवाले,
दर्द बहुत देते हैं.......

8438
नाख़ून अल्फ़ाज़ोंक़े,
रोज़ पैने क़रता हूँ...
ज़ख़्म रूहक़े सूख़ें,
अच्छे नहीं लग़ते...

8339
ज़िस्मसे होनेवाली मोहब्बत,
आसान होती हैं...!
और रूहसे हुई मोहब्बतक़ो समझनेमें.
ज़िंदग़ी ग़ुज़र ज़ाती हैं.......!!!

8340
प्यास इतनी हैं,
मेरी रूहक़ी ग़हराईमें...
अश्क़ ग़िरता हैं तो,
दामनक़ो ज़ला देता हैं...

No comments:

Post a Comment